Monday, February 9, 2009

लोकसभा चुनाव २००९: लोकविद्या पंचायत की दृष्टि

लोकसभा चुनाव २००९
लोकविद्या पंचायत की दृष्टि
विद्या आश्रम सा १०/८२ ए अशोक मार्ग, सारनाथ, वाराणसी - २२१००७
फोन- 0542- 2595120

अप्रैल २००९ में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। उदारीकरण और निजीकरण की अर्थनीति खुलेआम लागू करने के बाद से विभिन्न दलों के बीच के अन्तर कम हो गए हैं। सभी दल निजीकरण और उदारीकरण के पक्षधर हैं। सभी अमेरिका से दोस्ती को बढ़ाने के पक्षधर हैं। गरीबी और गैर-बराबरी समाप्त करने की बात कोई नहीं करता। सब दल उसी दुनिया को बनाने में लगे हैं जिसमें किसानों, कारीगरों, मजदूरों, छोटे-छोटे दुकानदारों और आदिवासियों (लोकाविद्याधरों) के लिया कोई जगह नहीं है। ये लोकाविद्याधरों और गरीब होंगे, उजाड़े जायेंगे और उनके घर के युवा नए अवसरों की खोज में डर-डर भटकेंगे, हताशा की ज़िन्दगी जियेंगे।

सब नई-नई प्रौद्योगिकी के पीछे पागल हैं। अपनी जमीनी विद्याओं, किसान और कारीगर के ज्ञान का तिरस्कार जारी है। लोकविद्या पंचायत इन्ही लोगों की, लोकाविद्याधरों की ज्ञान पंचायत है। पंचायत का यह मानना है कि गरीबी और गैर-बराबरी को ख़त्म करने की ताक़त लोकविद्या में है। इस दृष्टि से आगामी चुनाव माहौल में जहाँ गंभीर चर्चा सम्भव है वहाँ चर्चा के लिए लोकविद्या पंचायत जनता के सामने निम्नलिखित बातें रखती है:

१ सभी को अपनी विद्या के बल पर जीवन चलाने का मौलिक अधिकार हो।

२ बाज़ार में किसानों, कारीगरों, छोटे और पटरी के दुकानदारों, आदिवासियों, और महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था हो।
यानि
आरक्षण का प्रगतिशील सिद्धांत बाज़ार को लागू किया जाए।

३ अधिकतम और न्यूनतम आय में 5:1 से अधिक का अनुपात न हो। यदि अधिकतम आय एक लाख प्रति माह हो तो न्यूनतम आय रु बीस हज़ार प्रति माह से कम न हो।

४ ग्रामीण क्षेत्र में मीडिया, भाषा व कला के नए विद्यालय खोले जाएँ।

इन बातों पर प्रत्येक शनिवार को दोपहर 3:00 से 5:00 बजे तक विद्या आश्रम में सामूहिक चिंतन और चर्चाएँ होती हैं। इनमे आप भी शामिल हों और समाज में, लोकपक्ष में एक सशक्त पहल को आकर दे।

संयोजन एवं संपर्क:
दिलीप कुमार (9452824380)
लक्ष्मण प्रसाद (9335219307)
संतोष कुमार संविज्ञ (9452413811)
चित्र सहस्रबुद्धे (9838944822)
सुनील सहस्रबुद्धे (9839275124)

2 comments:

angadh-mangadh said...

The idea that there should be media/art/language schools in villages is new and needs to be developed. Would the readers of the blog respond on this specific suggestion? Reflect for a moment and you will see that this opens a different pathway for radical transformation of society in the interest of the poor and the exploited. The disability imposed by the mathematico-scientific educational system on ordinary people can be done away in one stroke. And the present destabilization of the world of knowledge by the information technologies and management have created a situation opportune to make this move.

Sunil

angadh-mangadh said...

The idea that there should be media/art/language schools in villages is new and needs to be developed. Would the readers of the blog respond on this specific suggestion? Reflect for a moment and you will see that this opens a different pathway for radical transformation of society in the interest of the poor and the exploited. The disability imposed by the mathematico-scientific educational system on ordinary people can be done away in one stroke. And the present destabilization of the world of knowledge by the information technologies and management have created a situation opportune to make this move.

Sunil