Monday, November 3, 2008

Lokavidya Panchayat 16 Nov. 2008, Vidya Ashram, Sarnath, Varanasi


Vidya Ashram is organising a lokavidya panchayat on 16 Nov। 2008 at the Ashram in Sarnath। It is likely to be attended by peasants, artisans, small shop keepers and women from the region, in all about 200-250 persons। Friends and supporters of the Ashram from various parts of the country will also participate in the Panchayat।The following pamphlet (in Hindi) is being used, for distribution and dialogue, for mobilization of knowledgeable persons in the region.



लोकविद्या पंचायत

लोकविद्या पंचायत लोकविद्याधारक समाज की ज्ञान पंचायत है।

विचार

  • मनुष्य एक बौधिक प्राणी है। ज्ञान और विवेक उसके स्वाभाविक गुण हैं।

  • अधिकांश लोग, किसान, कारीगर, आदिवासी, छोटे-छोटे दूकानदार और महिलायें कालेग या विश्वविद्यालय में नहीं पढ़े हैं लेकिन उनके पास अपना-अपना विस्तृत ज्ञान होता है। उनके ज्ञान को लोकविद्या कहा जाता है। यह लोकविद्याधर कहे जाते हैं।

  • लोकविद्या के बल पर यह अपने घर-परिवार चलाते हैं और तरह-तरह की सुविधाएं और वस्तुएं पूरे समाज को मुहैया कराते हैं।
  • इनके दुर्दशा का कारण यह है कि इनके ज्ञान का, लोकविद्या का, कोई संगठन नहीं है। राजनीति में, बड़े बाज़ार में, बड़े-बड़े सांस्कृतिक प्रथिष्ठानों में और विश्वविद्यालयों में इनके ज्ञान की कोई पूछ नहीं है। वास्तव में समाज के शक्तिसंपन्न स्थान लोकविद्या को ज्ञान मानने से ही इनकार कर देते हैं।

  • इसके चलते देश और समाज के संचालक मूल्यों, नीतियों और व्यवस्थाओं पर लोकविद्याधारक समाज की समीक्षा व राय लेने की कोई आवश्यकता ही नहीं समझी जाती। नतीजतन लोकविद्याधारक समाज के हित की बातें ठोस रूप में सार्वजनिक नहीं हो पातीं और न शासन की निति और व्यवस्था में कोई स्थान ही पातीं है।

  • जब तक लोकविद्या संगठित नहीं होती, तब तक सार्वजनिक दुनिया में लोकविद्याधारक समाज की दखल नहीं बन सकेगी। लोकविद्याधारक समाज खुशहाली और सम्मान हासिल करे इसके लिए इसी समाज की पहेल और नेतृत्व में लोकविद्या का संगठन होना ज़रूरी है।

  • लोकविद्या पंचायत लोकविद्या का एक ऐसा स्थान होगा जहाँ समाज में सही-ग़लत की पहचान व्यापक लोकविद्याधर समाज अपने ज्ञान के बल पर करेगा, किन्ही विशेषज्ञों पर अंध-भक्ति से नहीं।

लोकविद्या पंचायत को लोकविद्याधर समाज की ऐसी ज्ञान पंचायत बनाना है जहाँ -

  1. किसान, कारीगर, आदिवासी, छोटे-छोटे दूकानदार, महिलायें (लोकविद्याधर) अपने-अपने ज्ञान की क्षमता और सामर्थ्य को बढ़ाने व मज़बूत करने के लिए एकत्र होंगे।

  2. जाती, धर्मं और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर लोकविद्याधारक एक दूसरे से बराबरी के आधार पर वार्ता करेंगे।

लोकविद्या पंचायत लोकविद्याधर समाज की ज्ञान की गतिविधि का ऐसा स्थान बनेगी जहाँ से

  1. यह अभियान चलाया जायेगा के विभिन्न विद्याओं से प्राप्त आय में ५ गुना से अधिक का अन्तर न हो। यानी अधिकतम और न्यूनतम आय में अनुपात ५ रु १ का हो। (आज सरकारी नौकरी में यह अनुपात लगभग १५ रु १ और निजीक्षेत्र में लगभग १०० रु १ का है)।

  2. इस अनुपात को बनाने का लक्ष्य रखते हुए पंचायत, बाज़ार, कृषि, उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा आदि की व्यवस्थाओं पर प्रस्ताव तैयार कर शासन को लागू करने के लिए भेजेगी व इसके पक्ष में तर्क प्रस्तुत करेगी।
  3. संचार माध्यमों और सांस्कृतिक क्षेत्रों में लोकविद्या के मूल्य, शक्ति और दखल के रूपों पर चिंतन कर इनके पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए जायेंगे।

  4. लोकविद्या और लोकविद्याधर समाज की खुशहाली, सम्मान और समृद्धि के लिए राजनैतिक और सामजिक नेतृत्व के सामने सतत राय व प्रस्ताव रखे जायेंगे।

आइये


लोकविद्या पंचायत में भागीदार होकर लोकविद्या को ज्ञान का लोकविद्याधरों को ग्यानी होने का दावा पेश करें।

और

एक न्यायपूर्ण और बराबरी पर आधारित समाज को गढ़ने की लोक-आधारित ज्ञान- क्रिया को समाज में स्थापित करें।


विद्या आश्रम

सा १०/८२ अ अशोक मार्ग, सारनाथ, वाराणसी


फ़ोन- ०५४२- २५९५१२०

विद्या आश्रम एक ऐसा स्थान है जहाँ समाज के वे विचारक, लोकविद्याधर सामाजिक कार्यकर्त्ता, वैज्ञानिक और दार्शनिक मिलते हैं जिनकी मूल संवेदना समाज के गरीब व शोषित तबकों के साथ होती है। विद्या आश्रम समाज की शक्ति (लोकशक्ति) का आधार उन रचनात्मक कार्यों और संघर्षों में देखता है जो लोकविद्या की लूट और शोषण के ख़िलाफ़ होते हैं।

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